17 December 2013

इलाहाबादनामा – 4



                          इलाहाबादनामा 4  
          "If you live to be a hundred,i want to live to be a hundred minus one day so i never have to live without you".....A.A.Milne साहब की चंद पंक्तियाँ मेरे मस्तिष्क में उस 'युवा ज़माने और समय से  बेखबर जोड़े' को देखकर आ गयी ,जो पुल के उस पार खुद में खोये बैठे थे |ईश्क,मुहब्बत ,प्रेम ,बेहद बेपनाह ख़ुशी हैं ,किसी से भी करो ,कहीं भी करो ,पर शर्त एक हैं -न चाह हों ,न आरजू हों,न मांग हो कोई ....बस गरज इत्ती सी  हैं की तुम्हारा इश्क खालिस {PURE}हो |
                  अंग्रेजो के जमाने के इस पुल पर से  पैदल,साईकिल और मोटर साईकिल वाले ही आ जा सकते हैं|दूर से मेडिकल कालेज की लडकियों का फैशनेबल मस्त-मौला टोला गुजर रहा था |उसमे से भरे-पुरे चेहरे पर बड़ी बड़ी नीली आँखे और उनपर कमानीदार भौंहे वाली लड़की ने ,जो मेडिकल कालेज में मेरी सीनियर थी अपने सहेली को देखकर आँखे मारी और मुझे अकेला देखकर कुल्हे पर हाथ रखते हुए ,मेरे पास आई और बोली-"नमस्ते कौन करेंगा ?मैं हडबडा गया "न न ..नमस्ते मैम्म !" ...सब खिलखिला कर  हँस पड़ी |सबसे बारी बारी से मेडिकल कालेज के दस्तूर के हिसाब से सलाम किया|सब आगे बढ़ गयी ...और मुझे मोहसिन का वो शेर याद आया -

"लोगो ने यह सोचकर ,हमें नजरअंदाज कर  दिया 'मोहसिन'|

यह गरीब लोग हैं ,'मुहब्बत'के सिवा और क्या दें सकेंगे ?" || 

        जिंदगी में क्या मिलना हैं ?क्या नही मिलना हैं ?यह हमी से तय  होता हैं  |जिस विषय में आशावान होते हैं ,उसके साकार होने की सम्भावना बढ़ जाती हैं |जो सिचुएशन चाहिए हमे  ...जैसे सफलता ,आनंद,पैसे,मान-सम्मान हमे उसको महसूस करने की आदत डालनी ही  होगी,जैसे वह सबकुछ अभी हमारे पास हैं   |
     पुल के नीचे उन लोगो की चिताये जल रहीं थी ,जिन्होंने दुनिया को अपना सबकुछ देकर ,अपना समय पूरा करके यमलोक की नागरिकता ले ली थी |चट्ट-चट्ट की लकड़ी और शव जलने की आवाजे पुल के ऊपर तक आ रही थी |जिनको देखकर फिल्म "मुक्कदर का सिकन्दर" का वो गाना याद आ रहा था जिसमे निम्न पंक्तियाँ थी -

"जिंदगी तो बेवफा हैं ,एक दिन ठुकारएँगी |

मौत महबूबा हैं , अपने पास ले के जाएँगी ||"

       लग रहा था की औसतन हजार  महीने की {80-82 साल की } जिंदगी बहुत छोटी हैं ,जो कुछ भी करना हैं ,पाना हैं ...बस्स do it now !जरा सोचिये ,समय कितना तेज भाग रहा हैं ,दसियों बरस यूँ ही गुजर जाते हैं ,और हम लोगो को हवा तक नही लगती |फाफामऊ के श्मशान घाट पर ही "महराजिन बुआ "रहती थी ,जिनके विषय में कहा जाता हैं की वे दाह-संस्कार कराने वाली भारत की प्रथम महिला थी |"महराजिन बुआ"की पोती इलाहाबाद शहर की प्रसिद्ध गायिका ,रंगकर्मी और अभिनेत्री भी हैं |
       पुल के उस पार तेलियरगंज और प्रसिद्ध MNNIT कैम्पस हैं , तो दूसरी और फाफामऊ बाजार और रेलवे स्टेशन तथा शांतिपुरम हैं |गंगा-नदी से सटी हुयी एक झील हैं ,जिसे फाफामऊ झील कहते हैं ,कुछ समय पहले नगर निगम ने इसे शहर भर का कूड़ा निस्तारण केंद्र घोषित किया हैं |
      आईये शांतिपुरम से इलाहाबाद की और चलते हैं |शांतिपुरम में बस अड्डा हैं ,जहाँ से इलाहाबाद के कोने कोने तक जाने वाली बसें मिलती हैं |यही पर राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय का मुख्यालय भी हैं |शांतिपुरम में इलाहाबाद का सरकारी विशाल होमिओपैथी हॉस्पिटल और मेडिकल कालेज भी हैं ,जहाँ पर असाध्य रोगों की सफल चिकित्सा होती हैं ..सर्जन की चाकू से बचे हर भूतपूर्व मरीज के लिए यह हॉस्पिटल ,किसी देवालय से कम नही हैं|
      शान्तिपुरम से आगे गंगा पुल की तरफ बढ़ते हुए सड़क दो भागो में बट जाती हैं ,एक भाग फाफामऊ बाजार की तरफ तो दूसरा भाग गंगा पुल की तरफ जाता हैं |रेलवे के पुल के ऊपर का पुल  पैदल ,साईकिल और मोटर साईकिल वालो के लिए ही हैं,जबकी दूसरे पुल से सभी गाड़िया निकलती हैं |तेलियरगंज साईड में बैठने के लिए ईटो के टीले भी बने हैं ,अफरा-तफरी भरी  जिंदगी में दो पल यहाँ सकूंन से काटा जा सकता हैं |
      फाफामऊ झील के पास सर्दियो में अमरूदो का बाजार लगता हैं |अमरुद ,गुणों की खान हैं |कब्ज को जड़ से दूर करने के साथ साथ ,हिमोग्लोबिन की मात्रा भी बढ़ाता हैं |तेलियरगंज की तरफ बढने पर सबसे पहले MNNIT का गेट मिलता हैं |यह कालेज इलाहाबाद को अभियांत्रिकी शिक्षा और अनुसन्धान की नई उच्च बुलन्दियो  की और ले जाता हैं |
             आगे यूनिवर्सिटी की तरफ बढने पर 'भारतीय सेना का क्षेत्र"ARMY AREA" मिलता हैं |इस क्षेत्र में हर जगह अनुशासन ,कर्तव्य और बहादुरी की अनुपम गाथाये हैं |एक बड़ा बोर्ड लगा हैं जिसमे लिखा हैं -'भारतीय सेना सबसे अच्छी दोस्त {रेगिस्तान में फटेहाल को पानी पिलाने की तस्वीर के साथ },और सबसे अच्छी दुश्मन {सियाचिन में दुश्मन की तरफ बंदूके किये सैनिक की छवि के साथ}|    'दिनकर जी'    की कुछ पंक्तिया सहसा स्मृति में आलोकित हो उठी  "त्याग,तप करुणा,क्षमा से भीगकर व्यक्ति का मन बली होता हैं ,मगर हिंसक पशु घेर लेते हैं कभी ,तो काम आता हैं बलिष्ठ शरीर हीं"|कैंट एरिया काफी बड़ा हैं ,इसके आलावा 'इलाहाबाद का किला' और 'COD नैनी' ,'बमरौली एयर बेस'भी सेना की सरपरस्ती में हैं |उत्तराखंड आपदा से लेकर पुरे देश भर में जब जब व्यवस्था फेल हुयी हैं ,ये जाबांज ईश्वरीय दूतो के रूप में अपने जान की परवाह तक न करते हुए ...लोगो की सुरक्षा को समर्पित रहें हैं |लोग कहते हैं ,जिंदगी इम्तेहान लेती हैं ,पर यहाँ तो इम्तेहानो ने जिंदगी दी हैं |
      आगे 'पूरब का आक्सफोर्ड'यानी इलाहाबाद विश्वविद्यालय हैं ,जिसके 'लोगो 'में लिखा हैं "क्वाट रामी तात"यानी एक वृक्ष हजार शाखाये.....| इलाहाबाद विश्विद्यालय ने देश को राजनीति,प्रशासन ,शिक्षा के क्षेत्र के बड़े बड़े सुरमा दिए हैं ,परम्परा आज भी कायम हैं ...पर पिछले दिनों एक विभागाध्यक्ष की पिटाई से गुरु-शिष्य परम्परा कलंकित हुयी हैं |इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ,सरकारी मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजो में न केवल असभ्य विद्यार्थियो की ही बल्कि घमंडी  शिक्षको की भी  नई खेप हैं ,जो खुद को छात्रो का भाग्य -विधाता समझती हैं ,छात्रो को  बार बार ये शिक्षक समझाते हैं की तुम्हारे वायबा और इन्टरनल के मार्क्स मेरे हाथ में हैं }{अर्थात टैलेंट ,ज्ञान ,समझ गया तेल लेने ..}|गुरु जी 'फ़िराक' के जेहन में आप जैसे लोग आये होंगे तभी यह शेर फूटा होंगा -

'फ़रिश्ते    से         बेहतर         हैं ,       इंसान     बनना |

मगर     इसमें लगती      हैं ,   मेहनत            जियादा '||

   आर्मी एरिया,मोनिरबा आदि से आगे यूनिवर्सिटी की लाईब्रेरी से ठीक पहले गर्ल्स हॉस्टल हैं,बगल में प्रयाग रेलवे स्टेशन भी हैं  |अरे भईया पढ़ाकुओ की पूरी फ़ौज ही हैं इधर ,PCS-2011 का रिजल्ट ही देख लीजिये |इस सडक पर हमेशा खुसबू बिखरी रहती हैं -टैलेंट की खुसबू,स्टाईल/अदा  की खुसबू,मेहनत की खुसबू,सौन्दर्य और इंसानियत की खुसबू ...और खुसबू के दीवाने कुछ भौरें भी -

'हैं दिल में कोई राज ,कोई ख्वाब,कोई सूरत..

वो शख्स की जिसको मेरा होना भी नही हैं|

ए ईश्को मुहब्बत की रवायत भी अजब हैं ,

पाना भी उसे नही हैं,खोना भी उसे नही हैं | {शायरी-अज्ञात शायर  }

इसी रोड पर आगे आप बढ़ते रहेंगे तो पार्वती हॉस्पिटल के पास से होते हुए ,फोर्ड चौराहे पर पहुँच जायेंगे यहाँ से आप नैनी,संगम और झूसी जा सकते हैं |कुम्भ बस  लगने ही वाला हैं |कुम्भ नगरी करोड़ो पुत्रों के आगमन की प्रतीक्षा में श्रृंगाररत हैं |इलाहाबाद की हवाएँ हर आगन्तुक के कानो तक यह सन्देश ले जाती हैं -

नफरतें फना करों ,दिल से दरिया प्यार मुहब्बत का बहाओ यारों ,
कुछ जुगत करों,फासला आदमी   काआदमी से    मिटाओ  यारों ||
मंजिले  आसान  हो  हर   किसी की ,रौशनी दूर   दूर    तक  फैले ,
'दिया'   ऐसा   भी   कोई ,अपने  दिल    के  दरीचों में जलाओ यारों||



                    -अजय यादव
         {drakyadav@rediffmail.com}

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