5 September 2013

शीश दिये जों गुरू मिले ,तो भी कम ही जान !



                                 
      मैंने अपनी पढ़ाई अपने गाँव के प्राथमिक विद्यालय से शुरू की हैं|टाट –पट्टी पर पंक्ति बद्ध होकर बैठना,चाक से लकड़ी के पटरी पर इमला लिखना,बाद में अच्छरो कों सुंदर लिखने के लिए नरकट की कलम का प्रयोग ऐसे लगता हैं जैसे अभी कल की ही बात हों |हमारे प्राथमिक विद्यालय में उन दिनों शिक्षकों कों उनकी कक्षा के अनुसार नाम करन किया जाता था “कक्षा ५ में पढाने वाले शिक्षक श्री शिवराम कों हम  ‘पांच वाले मास्टर’, २ में पढाने वाले श्री बद्रीनाथ कों “दो वाले मास्टर” इसी तरह से...| कुल पांच गाँवों के बच्चे पढ़ने आते थे|गुलाब मास्टर के बारे में मशहूर था की जब वों “क ख ग ....”पढ़ाते थे तो ५०० मीटर परिधि में उपस्थित बच्चे बच्चे एवं उनके खेतों में काम कर रहें माँ-बाप तक कों भी इमला याद हों जाता था |अपने इन शिक्षकों की इतनी मेहनत याद करके रोम रोम आज उनके सम्मान में पुलकित हों उठता हैं |
     हमारे प्राथमिक विद्यालय में जिस दिन छुट्टी होती थी,वह दिन बहुत बुरा लगता था |छुट्टियों में दिन काटें नही कटते थे,लगता था कब स्कूल खुले और हम किताबों का झोला लेकर पंहुंच जाएँ|कक्षा ३ तक तो मैं सामान्य बच्चों की तरह रहा,पर कक्षा ४ में एक दिन डिप्टी साहेब के सवालों का जवाब निर्भयता से और सही से देकर मैं ‘४ वाले मास्टर’का प्रिय छात्र बन गया,उन्होंने मुझे और अच्छा बनाने के लिए छड़ी ,मुक्को ,हाथ-मरोड़ना हर अस्त्र का इस्तेमाल किया,जिसे याद कर मन आज भी सुखद अनुभूति से भर जाता हैं,काश थोड़ी और ज्यादा मार पड़ी होती तो हम सफलता की थोड़ी और ऊँची गाथा लिख रहे होते|कक्षा ५ के मेरे शिक्षक ,उन दुर्लभतम शिक्षकों की कैटेगरी में आते  हैं ,जिनका पढ़ाया हुआ जिंदगी भर नही भूलता,शेरशाह सूरी ...प्लासी का युद्ध...दो गति करने वाले पौधे ,कबीर रहीम ,रसखान के दोहे ,काव्य,,आज तक उनके वही अर्थ याद हैं जो उन्होंने पढ़े और सबसे खास बात यह हैं की इतनी सुंदर व्याख्या आज तक कहीं नही पढ़ी |
     पांचवी पास कर मैं मिडिल स्कूल {६ से ८ तक } में पहुंचा,जो घर से तीन किमी था |गाँवों के मिडिल स्कूलों की भाति यहाँ भी शिक्षकों की पहली पसंद बाहरी पोलिटिक्स{राज्य/देश/गाँव} और दूसरी पसंद  स्कूल की भीतरी पोलिटिक्स थी |हाँ अगर समय बच गया तो साथ में क्लास भी पढ़ा देते थे|यहाँ  भी दो  ऐसे शिक्षक  मिले जिनका पढ़ाया हुआ,आज तक मुझे याद हैं ,जिनकी दी हुयी सीख आज भी कदम कदम पर मेरा मार्गदर्शन करती हैं |एक शिक्षक श्री अभिमन्यु यादव,इतने बुलंद स्वरों में पढ़ाते थे ,की स्कूल से १०० मीटर दूर खेत में काम कर रहा कभी स्कूल न गया किसान भी काफी कुछ याद कर लेता था|अंग्रेजी इतना बढ़िया इन्होने पढ़ाया की आज तक स्पीकिंग में बहुत मदद मिलती हैं|व्यक्तिगत सफाई ,और मानसिक सफाई के संदर्भ में मेरे शिक्षक {पांच वाले और श्री अभिमन्यु } आज भी मेरा मार्गदर्शन करते हैं|घनश्याम मास्टर का विज्ञान समझाने का अंदाज़,लालता मास्टर का पढाया हुआ संस्कृत का हरेक पाठ आज तक मुझे बखूबी याद हैं|गणेश-स्तुति, शिव-स्तुति, पार्वती-स्तुति, सरस्वती-स्तुति का एक एक श्लोक मुझे आज भी बखूबी याद हैं ,जिसके कारण आज भी किसी अनजानी जगह पर सुबह की प्रार्थना के वक्त,श्लोक उच्चारण करने पर  लोग मुझे कर्म-कांडी ब्राम्हण समझ बैठते हैं |
     हाईस्कूल के लिए मैंने अपना नामांकन घर से पन्द्रह किलोमीटर दूर ‘सरस्वती मंदिर’ में कराया ,जहाँ मुझे धर्म ,आध्यात्म और भारतीय गुरुकुलो वाली शिक्षा दी गयी जो मेरे जीवन का आधार स्तम्भ हैं |भोजन मंत्र ,स्नान मंत्र,निद्रा मंत्र....और स्वदेशी कों पूर्ण रूप से इस्तेमाल योग्य कैसे निर्मित करें सीखा,यही पर मैंने विधिवत वाणिज्य की शिक्षा ली |राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक अति-सक्रीय सदस्य के रूप में स्वदेशी के उपयोग का प्रचार-प्रसार और मोटिवेशनल चीजे सीखी|
       इंटरमीडिएट की पढाई के लिए मैं इलाहाबाद के एक छोटे से औद्योगिक शहर नैनी आ गया,जहाँ मैंने वों सब कुछ सीखा जो आज आपसे इस ब्लॉग के जरियें बाटता हूँ ,राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में मेडल और अनेक ट्राफियो से मेरा घर भरा पड़ा हैं|उसी समय मेरे स्कूल में रेखा श्रीवास्तव {रेखा मैडम } ,रविकिरण सिंह तोमर जैसे परवाह करने वाले शिक्षक मिले |
 दोस्तों ये ज्यादा पहले की बातें नही हैं ,अभी मैं खुद २५+ में हूँ |पर इतने कम समय में हमारे मूल्य इतने तेजी से बदलें हैं की आज शिक्षक की छात्र के मंगलमय भविष्य के संदर्भ में कहीं गयी कोई बात छात्र कों इतना नागवार लगती हैं की सरे-बाजार उसे पीट देता हैं ,और आधुनिक शिक्षक ?............|मैंने अपने अनमोल  एक वर्ष अध्यापन किया हैं ,और पाया हैं की अगर आप बिना किसी लोभ ,लालच,वासना के  काम करते हैं तो बच्चे आपकी ईज्जत करते हैं,आपका मान करते हैं |रसायन पढाने से पहले मैंने रसायन विषय में खास योग्यता और समझ विकसित किया,साथ ही अच्छे पढ़ाने के तरीके समझने के लिए पुस्तके भी पढ़ी | मैंने सिर्फ एक वर्ष के अध्यापन में इतना सीखा हैं,जितना की १२ वर्ष अध्ययन के दौरान भी नही सीखा था,मेरे छात्रों ने इतने अदभुत तरीके कों तेजी से अपनाकर ,नए मुकाम तय किये हैं|धैर्य,आराम से बोलना ,सत्य बोलना ,संकल्प,कर्तव्य,समय का पाबंद होना ,दूसरों कों मोटिवेट करते करते खुद और ज्यादा मोटिवेट होना ....जैसे अनमोल चरित्र सीखे | मेरे छात्रों का एक बहुत बड़ा समुदाय आज  वेबिनार,सेमीनार के जरिये,एक्स्ट्रा क्लासेज के जरिये मुझसे जुड़ता हैं| 
अच्छे शिक्षक ,और अच्छे छात्र हमेशा थे और रहेंगे|

शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ|
{चित्र -गूगल} 
-डॉ अजय की कलम से |

3 September 2013

जिम्मेदारियाँ..................... हैं ! तेरी मेहरबानियाँ.....


||जिम्मेदारियाँ... हैं  ! तेरी मेहरबानियाँ..||

          इस ब्रम्हांड में संयोग जैसी कोई चीज नही होती ,हम एक सुव्यवस्थित ब्रम्हांड में रहते हैं |हमारे जीवन में होने वाला सब कुछ जिसे हम अच्छे या बुरे के आधार पर केटेगराईज्ड करते हैं |सब के लिए केवल और केवल हम,हमारी भावनाए या एहसास जिम्मेदार हैं |जरुरी हैं की , हमारा फोकस लेजर जैसा हों ,ताकि हमेशा मनचाही चीज के बारे में सोंचते व बात करते रहे | अक्सर लोग कहतें हैं “अजय जी !काम पर जाना पड़ता हैं”.बहुत कम कहते हैं की “काम पर जाता हूँ” ! दोस्तों ..जिम्मेदारी से सामर्थ्य बढ़ती हैं ,लेकिन उन लोगों का क्या ?जिनको जिम्मेदारी बोझ लगती हैं ,उन लोगों के मस्तिष्क के सोफ्टवेयर वाईरस{नकारात्मक विचार/भावनाएं } द्वारा प्रभावित हों चुके होते हैं |एक शेर याद आ रहा हैं

“एक  खता  ता-उम्र  हम ,   करते     रहें|

धूल चेहरे पर थीं,और आइना साफ़ करते रहें”||

दोस्तों हम सब आखिर क्यूँ जी रहें हैं ?

आप क्यूँ जी रहें हैं ?

हम सब जी रहें हैं क्यूंकि हम खुश रहना चाहतें हैं |

                हमे खुश रहने के लिए अपना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य हमेशा उत्तम रखना होंगा |शारीरिक स्वास्थ्य अर्थात कसरत जबकि मानसिक स्वास्थ्य से तात्पर्य नकारात्मक भावनाओं कों हटाकर सकारात्मक भावनाओं {Progressive Thought}कों स्थापित करना हैं |

यह कैसे होंगा ?

जैसे अंधेरे कों भगाने के लिए दीपक जलाते हैं, वैसे मन में सकारात्मकता कों लगातार स्थान देने पर नकारात्मकता का अंत हों जाता हैं |
अपने जीवन में अच्छे मित्रों,अच्छी पुस्तकों आदि कों समय देना होंगा |किसी व्यक्ति कों मैं उसके मित्रों कों देखकर ही पहचान जाता हूँ की यह किस स्वभाव का होंगा ,दोस्तों आपके जीवन का स्तर{दशा/दिशा }वैसे ही होंगी{औसतन} ,जैसे की आपके करीबी पांच मित्रों की होंती हैं |
परिवार {F.A.M.I.L.Y.=Father And Mother I Love You} की खुशी का ध्यान रखकर ही हम खुश हों सकतें हैं |हमारा देश वर्षों से पितृभक्ति वाला देश रहा हैं ,आप महर्षि परशुराम  के ज़माने से यह देख रहें हैं | 
माँ कभी कोई फरमाईश नही करतीं ,वे हमेशा बिना शर्त का प्रेम बांटती फिरती हैं ,दोस्तों उनको खुश रखियें |दुनिया के हर रिश्ते से ,माँ के साथ रिश्ता नौ महीने ज्यादा का होता हैं |माता खुश हैं तो पूरा परिवार खुश रहता हैं |
दोस्तों इस दुनिया में कोई सेल्फ मेड नही होता ,इस दुनिया में आने के लिए भी लोगों की जरूरत पड़ती हैं|हम अपने दिन के २४ घंटों में से ज्यादातर अपने काम के सिलसिले में खर्च करते हैं,हम जिस कंपनी में काम करते हैं,अगर उस कम्पनी कों खुद की कम्पनी मानकर  कार्य  करें तो आश्चर्यजनक तरक्की और इनकम से हमारी दुनिया आबाद हों जाएँ|
दोस्तों सारी दुनिया में ,यहाँ तक की घर-गृहस्थी में भी  तनाव का सबसे प्रमुख कारण “Lack Of Communication” हैं |घर पर होना अलग बात हैं ,घर वालों के साथ होना अलग बात  ! आप डिसाईड कीजिये की ज्यादा वक्त tv के साथ बिताते हैं ,या बीबी के साथ |
 दोस्तों !इस दुनिया में हमारा जो भी उद्दम/व्यवसाय/कृति  होती हैं ,उसके कुछ खरीददार होतें हैं,जिन्हें ग्राहक कहते हैं|ग्राहक मुर्गी नही हैं ,जो सोने का अंडा देती हैं ,मुर्गी कों तो कभी न कभी हलाक होना ही पड़ता हैं |दोस्तों !ग्राहक गाय की तरह हैं ,जो सेवा करने पर दूध देती हैं |
    दोस्तों ! दिल में ग्राहक का एक मंदिर बना लिजियें,रोज सुबह उनको नमन कीजिये ,क्यूंकि उन्ही से आपकी रोटी {R.O.T.I.=Return On Time Investment}चलती हैं,आपके बच्चों की फीस भरी जातीं हैं,आपकी बीबी के गहने खरीदे जाते हैं|

    कावड़ लेकर बाबा गोरखनाथ हजारों किमी की यात्रा कर चुके थे ,उन्होंने सड़क के किनारे एक बहुत बीमार ..मरते हुए गधे कों देखा,जो जल के लिए तडप रहा था |बाबा ने अपने कावड़ का जल उस गधे कों पिलाया ,यह देखकर बाकी कावड़िये नाराज़ भी हुए|बाबा बोले “देखो भाईयो !भोलेनाथ के लिए कावड़ तो आप सब ले जा रहें हों और मेरे दो मटके न चढ़े,तो भी उनकी प्यास पर कोई फरक नही पड़ेंगा ,लेकिन अभी यह जल अभी मैंने इस गधे कों नही पिलाया तो इसके प्राण का अंत हों जायेंगा |किद्वंती  हैं की पानी पिलातें ही शिव जी प्रकट हुए और बोलें की “अगर किसी का जल मुझ तक पहुंचा तो गोरखनाथ तेरा”|

दोस्तों ! जिस श्रृद्धा से आप मंदिर जाते हों ,अगर उसी श्रृद्धा से अपने काम पर जातें हों {चाहे जो करतें हों}तो समझ लीजिए की उस परमात्मा के दरबार में हाजिरी लग गयीं |

दोस्तों !
मैं आप सबके बीच का एक साधारण युवा हूँ ,कभी कभार पान की दूकान के पास खड़ा होकर लोंगो की बातें सुनता हूँ ,सिगरेट का कश खींचेंगे, और लम्बा धुँआ छोड़ेंगे ...और विश्व इकोनोमी व वकवास समाचारों की  की चर्चा करेंगे की देखों जी, चीन ने, जापान ने , अमेरिका ने कितनी तरक्की कर ली हैं, पर हमारा डाकटर मनमोहन सिंह कुछ करता हीं नही, क्रिकेट टीम बेकार हैं ...पूनम पांडे ....,विलायती हीरोईने ..इत्यादि इत्यादि |अब ये सब बातें करने से क्या स्थितियां सुधर रहीं हैं ?जब इनसे पूछो “जी ! भारत की इकोनोमी सुधारने के लिए आप क्या कर रहें हों ?..लो जी बात कर ली बस हों गयी पूरी जिम्मेदारी | ये ऐसे लोग हैं जिनको एक्सन बिलकुल नही लेना हैं और इनकी सोच पूरी तरह निगेटिव हों चुकी होती हैं |
       कुछ लोग तो बड़े सकारात्मक होतें हैं किन्तु एक्सन हीं नही लेते ,इसका भी कोई फायदा नही |इनसे तसल्ली तो मिल सकती हैं ,पर तरक्की नही|इस कैटेगरी के लोग OSTRICH SYNDROME से ग्रसित होते हैं अर्थात यथास्थिति का सामना नही करते ,भौकाल बनाते हैं बस |एडमंड बर्क कहतें हैं -

बुराई के जड़ ज़माने के लिए इतना काफी हैं की अच्छे लोग कुछ न करें ,और बुराई जड़ पकड़ लेंगी”

“For evil to flourish,good people have to do nothing and evil shall flourish”-Edmond Burke

पर कुछ लोग ऐसे LEADER हैं जिनको बेहतर कार्य और हर कार्य की जिम्मेदारी के लिए कोई तमगा नही चाहिए होता हैं{Lead Without A title} |ये किसी का दोष नही देखते ,बहाने नही बनाते और स्थिति कों बेहतर करने की दिशा में निरंतर लगे रहते हैं |इनकी प्रकृति पहल करने वाली {INITIATIVE}होती हैं |दुनिया में होने वाले समस्त बेहतर कार्यों के पीछे इनका हाथ और उर्जा होती हैं |ऐसा ही व्यक्ति बनने की कोशिश में मैं लगा हूँ|

1 September 2013

सबसे बड़ा रोग ! क्या कहेंगे लोग ?



रीना ने आज खुद के मुताबिक सफलता की सबसे ऊँचे पायदान को छुवा था,जिस चीज को उसने पाना चाहा था आज उसने पा लिया|पर इन सब में सबसे खास बात यह थी कि रीना ने अपनी जिंदगी में कभी मेहनत नही करना सीखा,उसकी फिलोसिफी थी कि मेहनत स्मार्ट थिंकर्स नही करते ..भगवान ने इंसान को इतना अक्ल दिया हैं,फिर मेहनत करने कि जरूरत क्या हैं?मेहनत के बजाय यदि किसी चीज कि जरूरत हैं तो वो हैं अपने कार्य कों पसंद और इंजॉय करना|जिन चीजों को आप पसंद करते हैं अगर उनको इंजॉय करना सीख जाते हैं तो हर चीज बहुत सरल हों जाती हैं |दसवी की परीक्षा में उसने बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया था ,फिर आज इंजीनियरिंग में उसने टॉप किया था फिर भी कहती हैं वो कभी मेहनत नही करती ..आखिर राज क्या हैं उसकी सफलता के पीछे आईये उसके जीवन का सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं
रीना हमेशा लाईट ट्रेवेल करती हैं अर्थात बिना फिजूल के इमोशंस ,गिल्ट ,इम्प्रेशन आदि के चक्कर में वह नही पड़ती न ही इन इमोशंस को अपने मष्तिष्क में रखती हैं | आप उसे पसंद करो या नापसंद करो ..वह इस चीज के पीछे कभी परेशान नही होती कि ….क्या कहेंगे लोग ??…अक्सर वह कहती भी हैं कि सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग”|अक्सर उसे मैं हवाओ से बातें करते खुले अम्बर तले खुले उड़ते बालो में साईकिल भागाते देखा हूँ | वह कहीं भी नुक्कड़ पर चाट खा सकती हैं ,किसी भी दूकान से स्टेशनरी खरीद सकती हैं ..इस मामले में उसे जो अच्छा लगता हैं करती हैं |बिना वजह के फेसबुक पर वक्त नही बिताती क्यूंकि उसको इसकी जरूरत नही लगतीइस विषय में रीना अक्सर कहती हैं हम लोगों को करना हैं ……पांच कार्य और करते पच्चीस हैं ,बिना वजह अपने जिंदगी में काम्प्लिकेसंस पैदा करते हैं|हमे जिंदगी में जो करना चाहिए सिर्फ वही करें तो हमारी जिंदगी यक़ीनन बड़ी सरल हों जाती हैं ,नही तो …………………हम स्वाद और चस्के लेने कि आदत के इतने गुलाम हों गए हैं, कि हम वो चीज भूलते जा रहें हैं जो यक़ीनन बहुत महत्वपूर्ण हैं हमारे लिए अक्सर हम लोग जीवन ऐसे जीते हैं जैसे कल कि तैयारी कर रहें हों लेकिन क्या कल किसी ने देखा हैं ?नही न….रीना का विश्वास हैं कि अपने लक्ष्य पर फोकस किया जाय तो रिजल्ट के रूप में जादू’{magical results]आते हैं |
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दोस्तों !जीवन में हमारी सोच के अनुसार हमे परिणाम मिलते हैं |आईये समझते हैं कैसे ?
ईश्वर के पास एक डिक्सनरी हैं, जिसमे सिर्फ एक ही शब्द हैं “तथास्तु”{granted}.
एक महिला कहती हैं “मुझे कोई नही चाहता”|
ऊपर से ईश्वर कहते हैं “तथास्तु”|
दूसरी महिला कहती हैं “मुझे !हर कोई चाहता हैं ,मेरा सम्मान करता हैं”|
ऊपर से ईश्वर कहते हैं “तथास्तु”
आप जैसी भी सोंच या भावना रखेंगे ,भगवान का तथास्तु{granted} हमेशा चलता रहता हैं |अब आप कहाँ कहाँ तथास्तु चाहते हैं ,ईश्वर से ??
चुनाव आपका हैं |

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