26 July 2013

एक शाम संगम पर {नीति कथा -डॉ अजय }

मैं लगातार मिलने वाली असफलता से टूट चूका था ,पढाई से कोसो दूर....... हर परीक्षा में फेल .....,समझ में नही आता था की मेरा लक्ष्य क्या हैं ?मैं खुद कों पैरेंट्स और धरती के लिए बोझ से ज्यादा कुछ भी नही समझता था |ऐसे बुरे वक्त में मेरा अपना साया भी मेरा साथ छोड़ चुका था ,पर खुशकिस्मती थी की मेरे पैरेंट्स अभी मेरा समर्थन करते नही थकते थे |लगातार असफलता और उससे व्युत्पन्न बदनामी{Low selfsteem} से तंग आकर मैं अक्सर संगम तट की ओर निकल जाता था ,जहाँ बालू के एक टीले पर बैठ जाता और नीचे गंगा ,यमुना और सरस्वती के जल कों निहारता रहता था |
 आज फिर मैं इसी मनोस्थिति में गंगा तट पर पहुंचा था |चंहु ओर निशब्द नीरवता व्याप्त थी ,कल-कल बहता हुआ जल ,लगता था..... हजारों साधक चिर-काल से समाधी में लींन हैं,गहन शांति की अनुभूति कर रहा था |भारत के एक प्रसिद्ध संत का कहा हुआ मुझे स्मरण आ रहा था “लाखो-करोडो वर्षों से भारत में ऋषि –मुनि व् तपस्वी गंगा तट पर तप करते रहे हैं ,गंगा के पानी व् रेत  कों तप की उर्जा से भरते रहे हैं ,जिसके कारण यह जल आध्यात्मिक रूप से तरंगित होता रहा हैं |इसीलिए यह विशिष्ट हैं”|


                    मेरा मन रिलैक्स हो रहा था ,मेरे मन में चल रहा था “पानी व्यक्ति की उर्जा से प्रभावित होता हैं ,तथा उर्जा की तरंगे उसके जरिये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति कों जल्दी ,आसानी व शुध्ह रूप से प्राप्त होती हैं ,शायद इसी कारण से पुरातन ऋषियो ने कुम्भ का आयोजन किया होंगा ,जिसमे हिमालय व सभी दिशाओ से आने वाले ऋषि,तपस्वी ,आम साधारण जनता के साथ स्नान करते हैं ,तपस्वी के साथ आया हुआ नदी का जल उसकी उर्जा तरंगों कों भी ले जाता हैं ,और जब आम जनता उसमे स्नान करती हैं तो उस उर्जा से प्रभावित होती हैं”|अपने जीवन में आपने भी संगम तट पर इस बात कों महसूस किया होंगा |


 उमड़ते-घुमड़ते विचारो के गुच्छे,आते जाते ,भिगोते रहे ,पर पता
 नही चला की मैं कब लगभग समाधिस्त अवस्था तक पहुँच गया ,सब कुछ अब अवचेतन ही था ,चेतन से संपर्क टूट चुका था |

 उनींदी अवस्था में मैंने महसूस किया की मेरे दक्षिणी पार्श्व से एक अलौकिक सौंदर्यवती ,तेजोमय,अत्यंत शांत काया आकर मुझे कुछ फिट दुरी पर रुकी हैं ,मैंने ध्यान से देखने की कोशिश की किन्तु उस अलौकिक सौंदर्यवती से नज़रे नही मिला सका |मैंने ठीक वैसी ही ,किन्तु थोड़ी सवाली सी बेहद तेजोमयी काया  कों अपने उत्तरी पार्श्व से आते महसूस किया ,भय मिश्रित आश्चर्य से लगभग चीखने ही वाला था की सामने से अत्यन्त रूपवती,तेजोमयी चिरयौवना ने अपने होठो पर अंगुली रखकर शांत रहने का निर्देश दिया |उन तीनो के आपसी तेजोमय,अलौकिक ज्ञान से भरे वार्तालाप सुनने से मुझे स्पष्ट हो गया था की तीनो भारत के कण-कण  कों जीवन देने वाली ,गंगा,यमुना और सरस्वती थी |
“पुत्र..... !हे मेरे विशिष्ट पुत्र..... !”उस सम्मोहन भरे विशिष्ट पुकार से मैं अपनी सुध-बुध खोता की उससे पहले मेरी निगाहे गंगा माँ के ज्ञान चछुओ से टकराई ....ऐसा लगा जैसे “पाज”बटन दब गया हों ....चारो ओर की सारी प्रकृति स्थिर हो गयी ,कानो में सिर्फ..घंटे-घरियालो व आरतियो के स्वर मंद-मंद सुनाई पड़  रहे थे,पुरे अंतर्मन में एक उजाले की तरंग प्रवेश कर गयी ,जैसे कोई असीम दिव्य उर्जा भेजी गयी हों ....|मेरे शरीर के भीतर ,मैंने महसूस किया जैसे बड़ी तेज हीलिंग,कायांतरण ,रूपांतरण की प्रक्रिया शुरू हों गयी थी |मन रूपी कम्प्युटर हार्ड –डिस्क  से एक एक  निगेटिव फाईले आटोमैटिक डिलीट होने लगी.......सारे निगेटिव सीमित रखने वाले विश्वास टूटने लगे ,ऐसी धारणाये जिन्हें ..जाने-अनजाने वर्षों पोषित किया था ,जो मेरे स्वयम विकास हेतु बाधा थे ...सेकंड के सौवे हिस्से में टूट टूट कर बिखर रहे थे |अपार जीवन शक्ति,अपार उर्जा ,अपार विश्वास इतना तेजी से बढा की लगा ,एक बार पुनर्जन्म {Re-Birth} ही हों गया |
 मेरे मन से एक कातर सी पुकार आई “माँ .................”|
“पुत्र...! तुम मेरे सभी मानव पुत्रो की तरह महान हों ,अदभुत हों ,विशिष्ट हों”....|यह कहकर माँ गंगा ,सरस्वती माँ की ओर देख मुस्कुराई |
आज हम तीनो तुम्हे वो सबकुछ बताएँगे जो सफल जीवन के लिए आवश्यक हैं वत्स !अपने मस्तिष्क रूपी कम्प्युटर में सारी बातें सुरक्षित कर लो और आपने जीवन में इनका अनुपालन करो ,मैं विनम्रता और कृतज्ञता से सर झुकाया |
तभी माँ सरस्वती ने स्नेह भरे लहजे में बोली “वत्स ...!मौन हो जाओ ........और महसूस करो की तुम ही ईश्वर हो ....महसूस करो ...महसूस करो...!अपनी आत्मा से जुडो”.
माँ की मधुर आवाज फिजाओ में गुजती हुयी प्रतिध्वनित हो रही थी |मेरा मन विल्कुल  शांत हो गया |इतना शांत की मेरे हृदय की लयबद्ध धड़कन,श्वास का आना-जाना सब सहज ही महसूस हो रहा था |
माँ आगे बोली “वत्स !हर दिन तुम्हारे चारो ओर जो भी घटे ,उसपर निर्णय करना ही बंद कर दों ,अगर तुम्हे अभीष्ट सफलता चाहिए तो,क्यूंकि इससे तुम्हारे मन में अच्छे –बुरे कों लेकर उत्पन्न होने वाला द्वन्द नही पैदा होंगा |यह द्वंद तुम्हारे तथा विशुद्ध क्षमता के बीच उर्जा प्रवाह में रुकावट डालता हैं |जब तुम अनिर्णय करने के अभ्यास से जुड़ जाओंगे तो बिलकुल शांति की अनुभूति करोंगे ,और तुम्हारी आंतरिक उर्जा का सदुपयोग हो सकेंगा |तुम प्रकृति के किसी भी रूप झरने ,पहाड ,जंगल ,समुद्र से जुड़ कर जादुई तथा रहस्यमयी क्षमता कों खुद में विकसित होते हुए पावोगे |यह क्षमता तुम्हे भयरहित,स्वतंत्र तथा सीमाओं के परे ले जायेंगी |आत्मज्ञान से जुडकर ही पूर्णतया भयमुक्त बनोंगे”
मैंने माँ के सामने कृतज्ञता और विनम्रता से दंडवत किया |
माँ यमुना मुस्कुराते हुए बोली “पुत्र हर जगह ,तुम अपने आस-पास के लोगो कों विना शर्त प्रेम दों ,हर किसी कों मन ही मन शुभकामनाये व आशीर्वाद दे के देखो ,इससे आनंद के एक प्रक्रिया की शुरुवात होंगी,”!
“दुनिया तुम्हे अपने स्वरुप के अनुसार नही ,बल्कि तुम्हारी दृष्टि के अनुसार दीखती हैं |जाकी  जैसी भावना उसको वैसा फल” |
यह जानकारी मेरे लिए विशिष्ट थी मैंने उपर लिखे वाक्य कों मन ही मन दुहराया ...
माँ गंगा मुस्कुराते हुए कह रहीं थी .. “पुत्र ..हर क्षण तुम जो भी चयन{कर्म} करते हो जरा अपने हृदय से पूछ लिया करो ..|तुम्हारे चयन का परिणाम क्या होंगा ,क्या तुम्हारे चयन से तुम्हे व आस-पास के लोगो कों खुशी होंगी या नही ,और सुनों ..हृदय से मिला..संगत /असंगत जबाब ही तुम्हारा सच्चा पथ-प्रदर्शन होंगा |
तीनो माताये एक दूसरे की तरफ देख मुस्काई ,
मैंने अपने हाथ जोड़ लिए.....और सारा ज्ञान पूरी तरह सीखने के लिए,अपना पूरा ध्यान लगा दिया ..... 
माँ सरस्वती बोली “पुत्र ..तुम्हारे विचारों से दुनिया का सहमत होना जरुरी नही हैं ,अपने विचारों से दुनिया कों सहमत कराने की जद्दोजहद में तुम अपार उर्जा खर्च करते हो ,सारी उर्जा कों अपने लक्ष्यों की तरफ उन्मुख करों ....जब तुम्हारे पास स्वयम की रक्षा के लिए कोई विन्दु या कोई कारण ही नही होंगा तो लड़ना या प्रतिरोध करना बंद कर दोंगे ,फिर तुम वर्तमान में ही जियोंगे”
"बिलकुल माँ "!यह मेरे लिए दुर्लभ ज्ञान हैं ,अभी मैं कुछ दिनों पहले ही अपनी बात से सहमत कराने के लिए साहित्यकारों के एक समूह से भिड़ गया था ...मैं बोल पड़ा|
प्रत्युत्तर में माँ उसी स्नेह से मुस्कुराई,जैसे  माँ प्रेम से अपने अबोध बालक कों देख के मुस्कुराती हैं  |
माँ यमुना ने अपनी मधुर देव-वाणी में कहा “पुत्र !चीजों कों कैसा होना चाहिए ,इस पर अपना विचार थोपने के बजाय अपने लक्ष्य पर ध्यान रखो |इस क्षण ब्रम्हांड विल्कुल वैसा हैं ,जैसा इसको होना चाहिए”प्रकृति हमेशा प्रयास रहित ,स्वछन्द ,सौहार्द तथा प्रेम से कार्य करती हैं ,जैसे सूर्य की प्रकृति चमकना हैं ,वैसे तुम मनुष्यों की प्रकृति भी अपने लक्ष्यों कों विना किसी कठिनाई के आसानी से अपना लक्ष्य पाने की हैं ,शर्त बस इतनी हैं की तुम्हारे कर्म प्रेम से प्रेरित हों |हर उत्पीडक एक सीख देने वाला शिक्षक और हर विषम परिस्थिति एक महान अवसर हैं प्यारे !...अगर तुम समझो तो ....!
यह कहकर माँ यमुना , माँ गंगा की ओर देख कर मुस्कुराई !
और मैंने दंडवत प्रणाम किया |
माँ गंगा के स्वर सांतवे व्योम से प्रस्फुरित होते मेरे कानो में पड़े .. “ज्ञात से अपना जुड़ाव खत्म कर,अज्ञात की ओर बढ़ो वत्स,उस आनंद और रहस्य के एहसास के दौरान तुम जादू महसूस करोंगे ,संभावनाओं के प्रति विचारों कों खुला रखना होंगा तुम्हे |
मैंने विनम्रता से हामी में सिर हिलाया |
माँ यमुना ,मुस्कराई और टाईम मशीन में समय देखते हुए बोली “बेटा !तुम मानव लोग ,आत्मिक जीव हों,एक महान उद्देश्य के लिए इस पृथ्वी पर तुम्हारा आगमन हुआ हैं |तुममे मानवता कों बेहतर देने की विशिष्ट योग्यता हैं ,और हर विशिष्ट योग्यता की अभिव्यक्ति के लिए कुछ विशिष्ट जरूरते भी होती हैं ,तुम जब इस विशिष्ट योग्यता कों मानवता की सेवा से जोड़ दोंगे ,तो हर्षोल्लास,आनंद और आपार उर्जा महसूस करोंगे ...और यही हैं सब “उद्देश्यों  का उद्देश्य ”..पुत्र तुम खुद के भीतर के देवत्व कों पोषित करों ,अपनी आत्मा पर ध्यान दो ...इसी से शरीर तथा तुम्हारा मस्तिष्क संचालित हैं”.
मुझे इस अलौकिक ज्ञान संगम में बड़ी दिव्य अनुभूति हों रही थी |
पुत्र तुम्हारी ज्ञान –जिज्ञासा से हम बहुत प्रसन्न हुए ,तुम आते रहना हमसे मिलने ,अब हम तीनो कों अपने अरबो पुत्रो से मिलना हैं ,और हा..... जो जो भी मिले उससे कहना की “हम जीवनदायनी रहें हैं ,और रहेंगी भी ...अपनी लालची पंथी कों छोड़कर हमारे जल में कूड़ा करकट न भरे,क्यूंकि इससे तुम मानव अपना ही हित करोंगे, अलकनंदा{केदार नाथ } की तरह अपना आपा न खोने का बचन देते हैं” |
अचानक से मेरी तन्द्रा टूटी ...मल्लाह पुकार रहा था “हों डागदर बबुआ ,संगम  से आज जाबा  की न जाबा “चला तीरे छोड़ आई” |मैंने अपनी घड़ी देखी,अभी कुछेकघंटे  ही हुए थे  यहाँ आये |
आज मैं लगातार सफलता की सीढिया चढता ही जा रहा हूँ ,वह दिन और आज का दिन ....!

वैसे आजकल  आप अक्सर मुझे लगभग हर सुबह संगम तट पर , संगम  के दैवीय मोक्षदायक जल से सूखे फूल और पालीथिन निकाल कर कूड़े के बक्से में डालता देख सकते हैं |


@a story by AJAY YADAV 
इमेल-
ajayyadav@myself.com
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